राजनीतिक विज्ञान
लघु उत्तरीय प्रश्न
Q1. भारत की संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति क्या है?
उत्तर- लोकसभा में महिला प्रतिनिधियों की संख्या बढ़कर आज 59 जरूर हो गयी है, किन्तु यह अभी भी 11% से कम है। विकसित राष्ट्रों के विधायिकाओं में महिला प्रतिनिधियों की संख्या अपर्याप्त है ब्रिटेन में 19.3%, अमेरिका में 16.3%, इटली में 16.1%, आयरलैण्ड में 16.2%, तथा फ्रांस में 13.9%। भारतीय सदंर्भ में अधिकांश महिला सांसदों की पारिवारिक पृष्ठभूमि राजनैतिक रही है या कुछ मामलों में अपराधिक भी। यह इस बात को प्रमाणित करती है कि सामान्य महिलाओं के लिए अभी भी विधायिका की दहलीज दूर है।
Q2. सत्ता की साझेदारी लोकतंत्र, में क्या महत्व रखती है?
उत्तर-लोकतंत्र शासन-प्रणाली में जनता का, जनता के लिए तथा जनता के द्वारा शासन होता है। जिस शासन व्यवस्था में राजनैतिक साझेदारी हो, वह अत्यन्त ही सशक्त प्रणाली है। यह हिस्सेदारी की व्यवस्था जिस शासन व्यवस्था में की जाती है लोकतंत्रात्मक शासन व्यवस्था कहलाती है। गैर लोकतांत्रिक सरकारें (जैसे एक दलीय शासन प्रणाली, राजशाही या तानाशाही जैसी स्थितियाँ) सभी को सत्ता में साझेदारी, सभी नागरिकों के लिए सत्ता की व्यवस्था में विश्वास नहीं रखती। ऐसी शासन प्रणाली प्राय: आन्तरिक सामाजिक समूहों में व्याप्त मतभेदों, विभिन्नताओं एवं अन्तरों की या तो अनदेखी करती हैं या इन्हें कुचल कर रख देती हैं। लोकतंत्रात्मक शासन व्यवस्था ही सामाजिक विभाजनों में प्रतिद्वन्द्विता समाप्त करती है। दोनों ही व्यवस्थाओं में समूहों के टकराव को टालने या उनके विध्वंसक रूप लेने के पहले बुझा देने का प्रयास किया जाता है। लोकतंत्र प्रणाली में इसे शान्तिपूर्ण सहमति एवं साझेदारी द्वारा जबकि अन्य प्रणाली में इसे सख्ती या दबाव द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
Q3. गठबंधन की राजनीति कैसे लोकतंत्र को प्रभावित करती है?
उत्तर-गठबंधन की राजनीति के दो पहलू हैं-गठबंधन चुनाव पूर्व या चुनाव के बाद, दूसरा स्थायी गठबंधन अस्थायी, अवसरवादी गठबंधन। सैद्धान्तिक समानता के आधार पर गठबंधन का निर्माण हो सकता है। किन्तु बगैर सैद्धान्तिक समानता के भी राजनैतिक गठबंधन होते हैं। सरकार गठन या सत्ता पर कब्जा करने की लालसा से ऐसा गठबंधन होता है। बहुमत नहीं मिलने के कारण राजनैतिक गठबंधन करना पड़ता है। गठबंधन के अन्तर्गत क्षेत्रीय दलों से राजनैतिक समझौते करने पड़ते हैं परिणामतः गठबंधन में शामिल राजनैतिक दल अपने व्यक्तिगत हित और लाभ का ध्यान रखने लग जाते हैं। इससे प्रशासन पर सरकार की पकड़ ढीली पड़ने लगती है। अंततः सरकार गिर जाती है एवं बदनाम हो जाती है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
Q4. राजनीतिक दलों को "लोकतंत्र का प्राण" क्यों कहा जाता है?
उत्तर- राजनीतिक दल आवाम से मिलकर बनते हैं। इसकी इकाइयाँ राष्ट्र के निचले हिस्से तक होती है। राजनैतिक दल की पकड़ जनता की भावनाओं एवं विचारों तक होती है। ये जनता की नब्ज बखूबी पहचानते हैं परिणामतः सत्ता अपना निर्णय राजनैतिक दलों के विचारों को जानकर करती है ताकि नीतियाँ कहीं जनविरोधी न बन जाए और परिणामस्वरूप उसे सत्ता से बेदखल होना पड़ जाय। राजनैतिक दलों का आधार जाति, धर्म, क्षेत्र या लिंग विशेष नहीं होता। इसलिए दलों की नीतियाँ एवं कार्यक्रम समग्र एवं व्यापक होता है, किसी क्षेत्र विशेष या हित के लिए नहीं। राजनैतिक दलों का प्रयास होता है कि निर्णय समग्रता से लिया जाए जिसमें समाज का कोई भी तबका असंतुष्ट न हो। इस प्रकार राजनैतिक दलों के सहयोग से ही लोकतांत्रिक व्यवस्था चलायी जा सकती है। लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में राजनैतिक दलों की अपरिहार्यता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। तभी तो राजनैतिक दल "लोकतंत्र का प्राण" है।
Q5.परिवारवाद और जातिवाद बिहार में किस तरह लोकतंत्र को प्रभावित करता है?
उत्तर-बिहार में परिवार लोकतंत्र को प्रभावित करता है। परिवारवाद से बिहार के लोकतंत्र में कुशल व्यक्तियों की अनदेखी एवं अकुशल लोगों द्वारा सत्ता प्राप्ति देखा गया है। अकुशल लोग विहार की समस्या की अनदेखी कर अपने परिवार को बढ़ाने में लग जाते हैं।जातिवाद का तात्पर्य राजनीतिक प्रक्रिया में जातिगत पहचान के आधार पर भागीदारी के महत्व प्राप्त होना है। भारतीय समाज में जाति व्यवस्था की जड़ें अत्यन्त गहरी हैं तथा व्यक्तियों की जातिगत पहचान उनकी नागरिकों के रूप में पहचान से अधिक मजबूत है । अतः जब नागरिक राजनीतिक प्रक्रिया के विभिन्न चरणों-चुनाव, मतदान, सरकार का निर्माण, सरकारी लाभों का वितरण, महत्वपूर्ण नियुक्तियों, आदि में जातिगत पहचान को अधिक महत्व देते हैं, तो उसे जातिवाद कहा जाता है।बिहार की राजनीति भी अन्य राज्यों की तरह जातिवाद से प्रभावित है। बिहार में तीन प्रकार के जातिगत समूह उच्च जातिवर्ग, पिछड़ा जातिवर्ग तथा अनुसूचित जातिवर्ग सक्रिय है। प्रत्येक जाति का जाति समीकरण चुनावों में सफलता तथा सरकार के कामकाज का आधार बन जाता है। 2010 के चुनाव में बिहार की राजनीति में जातिवाद का प्रभाव मतदातों ने बिल्कुल खारिज कर दिया।