Bihar Board Class 10 Economics Chapter 2 Short Revision Notes | Highly useful for BSEB Matric Exam
राज्य एवं राष्ट्र की आय
समाज का कोई व्यक्ति जो अर्जित करता है वह उसकी आय कहलाती है। किसी देश की अर्थव्यवस्था के लिए उस देश के नागरिकों की व्यक्तिगत आय या सामाजिक आय सम्पन्नता या विपन्नता का सूचक है।
सम्पूर्ण देश के राज्यों की आय के मुकाबले बिहार की आय सर्वाधिक कम है। यहाँ पूँजी का निर्माण नहीं हो पाता, जिस कारण विनियोग भी कम ही होता है। इससे यह कृषि में तो पिछड़ा है ही, उद्योगों में भी काफी पिछड़ा है। जो उद्योग थे, वे भी बन्द हो चुके है। रैगनर नर्क्स के कहने का सार भी यही है कि गरीब इसलिए गरीब है कि इसमें गरीबी व्याप्त है। गरीबी के कारण उनकी आय कम है, उनमें अशिक्षा है, अज्ञानता है, इससे उनमें जनसंख्या की वृद्धि दर भी अधिक है।
किसी देश की राष्ट्रीय आय उस देश के आर्थिक विकास को प्रभावित करती है। लोग खेतों में काम करते हैं, कल-कारखानों में काम करते हैं। शिक्षक पढ़ाते हैं, डॉक्टर चिकित्सा करते हैं, जिससे भौतिक तथा अभौतिक वस्तुओं का निर्माण होता है। बाद में भौतिक वस्तुओं को मौद्रिक रूप में बदल लिया जाता है। इन सभी की आय को मिलाकर राष्ट्रीय सूचकांक तैयार होता है ।
राष्ट्रीय आय में देश के कुल नागरिकों की संख्या से भाग दिया जाता है और भागफल को प्रति व्यक्ति आय माना जाता है। पंचवर्षीय योजनाओं के लागू होने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कुछ सुधार नजर आने लगा है। राष्ट्रीय आय की गणना के लिए उत्पादन, आय तथा व्यय को ध्यान में रखा जाता है। राष्ट्रीय आय देश के आर्थिक स्थिति के आकलन का सर्वाधिक विश्वसनीय मापदंड है। लेकिन राष्ट्रीय आय की गणना में कुछ कठिनाइयाँ भी हैं। जैसे : (i) आँकड़ों को एकत्र करने में कठिनाई, (ii) दोहरी गणना की आशंका, (iii) मूल्य मापने में कठिनाई ।
देश के विकास में राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय का काफी योगदान रहता है। राष्ट्रीय विकास को एक चक्र रूप में भी दिखाया जा सकता है
- आर्थिक विकास
- राष्ट्रीय आय में वृद्धि
- प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि
- विकास की क्रिया