भारत में राष्ट्रवाद
राष्ट्रवाद का वास्तविक अर्थ है राष्ट्रीय चेतना का उदय। भारत में राष्ट्रीय चेतना का उदय उन्नीसवीं सदी के मध्य में ही हो चुका था। यहाँ राष्ट्रीय चेतना को जाग्रत करने में विभिन्न कारकों का योगदान था। भारत में अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार ने राष्ट्रवाद को उदित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
आर्थिक कारण, सामाजिक कारण, धार्मिक कारण आदि कारणों ने मिलकर भारत में राष्ट्रवाद का बिगुल फूंक दिया। इसी समय भारत में अनेक महापुरुषों का प्रादुर्भाव हुआ, जिनमें राजा राममोहन राय, देवेन्द्र नाथ ठाकुर, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, स्वामी विवेकानन्द, स्वामी दयानन्द सरस्वती आदि प्रमुख थे। इन महापुरुषों ने समाज सुधार के साथ शिक्षा के प्रचार-प्रसार में अच्छा योगदान दिया।
प्रथम विश्व युद्ध ने भारत में राष्ट्रवाद ही नहीं, राजनीतिक इच्छा शक्ति को भी बढ़ा दिया। राजनीति के क्षेत्र में अनेक लोग सामने आ चुके थे। युद्ध के बाद ही जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था। इसने भारतीय राष्ट्र वाद को इतना बढ़ाया कि अब अंग्रेजों को भगाकर अपनी सरकार स्थापित करने की बात होने लगी। सत्याग्रह और विरोध का एक सिलसिला शुरू हो गया।
गाँधीजी ने असहयोग आन्दोलन चलाया। उनका कहना था कि अंग्रेजों के किसी काम में सहयोग नहीं दिया जाय। असहयोग आन्दोलन के बाद सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू हुआ, जिसका सामाजिक आधार काफी मजबूत था। अब पूर्ण स्वराज्य की माँग होने लगी। 6 अप्रैल, 1930 को गाँधीजी ने दांडी में नमक कानून तोड़ा और अपनी गिरफ्तारी दी। अब देश भर में नमक कानून तोड़ा जाने लगा और गिरफ्तारियाँ दी जाने लगीं। यह सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत थी। कार्यक्रम एक सिलसिला से चला। इस आन्दोलन का परिणाम देश के अनुकूल रहा। किसान आन्दोलन, चम्पारण आन्दोलन, खेड़ा आन्दोलन, मोपला विद्रोह, बारदोली सत्याग्रह, मजदूर आन्दोलन, जनजातीय आन्दोलन आदि आन्दोलन अत्यंत सफल रहे।
28 दिसम्बर, 1885 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन हुआ। इसके प्रथम अध्यक्ष ब्योमेश चन्द्र बनर्जी थे। पूरा देश कांग्रेस के साथ मिलकर अंग्रेजों को भगाने और भारत में अपना शासन स्थापित करने में जुटा था। देश की एकता से अंग्रेज घबड़ा गए। उन्होंने फूट डालो और शासन करो की नीति अपनाई। उन्होंने मुसलमानों के कुछ प्रमुख लोगो को मिलाकर मुस्लिम लीग की स्थापना करा दी। इतना ही नहीं मुसलमानों की पीठ ठोककर उन्होंने देश के बँटवारे की माँग उठवा दी। यह किसी भी तरह से जायज नहीं था, लेकिन हुआ। अंग्रेजों की मंशा थी कि बँटकर ये अपने देश का विकास नहीं कर सकते। मुसलमानों के लिए पाशा उल्टा पड़ा। पाकिस्तान शुरू से ही अमेरिका का पिछलग्गू बना रहा और अपने विकास की ओर ध्यान नहीं दिया। लेकिन भारत शुरू से ही अपने विकास में लगा रहा। आज भारत विश्व के अनेक विकसित देशों के मुकाबले में अपने को खड़ा कर लिया है।