. रोजगार एवं सेवाएँ
रोजगार एवं सेवा एक-दूसरे से अलग नहीं, बल्कि परस्पर अन्योन्याश्रित है। रोजगार के अवसर से ही सेवा का अवसर मिलता है। आर्थिक विकास में इन दोनों का काफी महत्व है।
आर्थिक विकास के मुख्यतः तीन क्षेत्र है:
(क) कृषि क्षेत्र,
(ख) उद्योग क्षेत्र तथा
(ग) सेवा क्षेत्र।
सेवा क्षेत्र के दो भाग हैं:
(1) सरकारी सेवा तथा
(ii) गैर-सरकारी सेवा।
भारत में सेवा क्षेत्र का काफी महत्त्व है। वह सरकारी हो या गैर सरकारी, हर क्षेत्र में सेवा की आवश्यकता है और लोगों को उस क्षेत्र में सेवक बन आय प्राप्त करना आवश्यक है, जिससे वे अपना और अपने परिवार का जीवन यापन कर सके।
रोजगार सृजन में सेवाओं की अहम भूमिका है। राष्ट्रीय स्तर पर भारत सरकार ने रोजगार सृजन के अनेक द्वार खोले है। वे हैं:
(i) काम के बदले अनाज,
(ii) राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम,
(iii) ग्रामीण युवा स्वरोजगार प्रशिक्षण कार्यक्रम,
(iv) ग्रामीण) भूमिहीन रोजगार गारंटी कार्यक्रम (नरेगा),
(v) समेकित ग्रामीण विकास कार्यक्रम,
(vi) जवाहर रोजगार योजना,
(vii) स्वयं सहायता समूह इन सेवाओं द्वारा देश से वेरोजगारी दूर करने का प्रयास किया जा रहा है।
भारत में बहुत से दर्शनीय स्थान है, जहाँ सैर-सपाटे के लिए विश्व भर से पर्यटक आते हैं। उन्हें सेवा प्रदान कर भारत विश्व को सेवा प्रदाता में आज अग्रणी बना हुआ है।
सेवा क्षेत्र की कुछ बुनियादी सुविधाएं है। वे है:
(i) वित्त, (ii) ऊर्जा, (iii) यातायात, (iv) संचार, (v) शिक्षा, (vi) स्वास्थ्य, (vii) नागरिक सेवाएँ।
किसी भी देश के विकास के लिए मानव संसाधन का होना आवश्यक है। इसे मानव पूँजी भी कहा जाता है। मानव पूंजी के प्रमुख घटक है (i) भोजन, (ii) वस्त, (iii) आवास, (iv) स्वास्थ्य तथा (v) शिक्षा शिक्षा आज अत्यावश्यक हो गई है। आधुनिक मंदी का कुप्रभाव भारतीय सेवा क्षेत्र पर तो पड़ा, किन्तु बहुत ही कम ।