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वित्तीय संस्थाएँ
चाहे कृषक हो या व्यापारी या उद्योगपति- सभी को पूँजी के लिए साल की आवश्यकता होती है। इस आवश्यकता की पूर्ति वित्तीय संस्थाएं करती हैं। इनके लिए, जो वित्तीय प्रबंधन किया जाता है, वे बहुत तो सरकारी होती है और कुछ अर्द्ध सरकारी भी होती है। अर्द्ध सरकारी वित्तीय संस्थाओं में सहकारी बैंक आते हैं। इसके लिए सब सहकारी संस्थाओं के शीर्ष पर बिहार में बिस्कोमान' जैसी संस्था स्थापित की गई है। वित्तीय संस्था मौद्रिक क्षेत्र में देश या राज्य की ऐसी संस्थाएँ होती है जो कृषकों, व्यापारियों या उद्योगों को साख की सुविधा प्रदान करती है। सरकारी वित्तीय संस्थाओं में राज्य संपोषित बैंक होते हैं, जो रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की देख-रेख में काम करते है। अर्द्ध सरकारी वित्तीय संस्थाओं में सहकारी समितियाँ तथा सहकारी बैंक होते हैं। सूक्ष्म वित्तीय संस्थाओं में स्वयं सहायता समूह आते हैं, जिनको ग्रामीण महिलाएँ चलाती है।
वित्तीय संस्थाएँ मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं:
(i) राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएँ तथा
(i) राज्य स्तरीय वित्तीय संस्थाएँ।
राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएँ भी दो प्रकार की होती है :-
भारतीय मुद्रा बाजार तथा
भारतीय पूंजी बाजार जहाँ तक देश के अंदर बैंकिंग प्रणाली की बात है तो इसके अन्दर अग्रलिखित बैंक आते है: (i) केन्द्रीय बैंक,
(ii) वाणिज्य बैंक तथा
(iii) सहकारी बैंक।
भारतीय पूंजी बाजार में चार वित्तीय संस्थाएँ आती है। वे हैं
(1) प्रतिभूति बाजार,
(ii) औद्योगिक बाजार,
(iii) विकास वित्त संस्थान और
(iv) गैर बैंकिंग वित्त कम्पनियों।
राज्य स्तरीय वित्तीय संस्थाओं को भी दो वर्गों में रखा गया है। वे है :
(i) गैर-संस्थागत तथा
(ii) संस्थागत गैर-संस्थागत में ग्रामीण महाजन, सेठ साहुकार, व्यापारी तथा रिश्तेदार आदि आते है। संस्थागत में सहकारी बैंक, प्राथमिक सहकारी समितियाँ, भूमि विकास बैंक, व्यावसायिक बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, नाबार्ड आदि ।
व्यावसायिक बैंक के कार्य हैं
(1) जमा राशि स्वीकरना, (ii) ऋण प्रदान करना, (iii) सामान्य उपयोग कार्य तथा (iv) एजेंसी सम्बंधी कार्य जमा राशि भी चार प्रकार की होती है। (i) स्थायी जमा, (ii) चालू जमा, (iii) संचयी जमा तथा (iv) आवर्ती जमा बैंकों के ऋण पाँच प्रकार के होते हैं (1) अल्पकालिक ऋण, (ii) नकद साख, (iii) ओवर ड्राफ्ट, (iv) विनिमय बिल भुनाना तथा (v) ऋण एवं अभिम
बैंक अपने ग्राहकों को कई प्रकार की ऐसी सेवाएं देते हैं, जिनके एवज में बहुत कम भुगतान लेते हैं। उदाहरण में हम लॉकर को ले सकते है। लॉकर की दो चाभियों होती है। एक ग्राहक के पास तथा एक बैंक के पास उस लॉकर में क्या रखा है इससे बैंक को कोई मतलब नहीं रहता। दोनों चाभियों के रहने पर ही लॉकर खुल सकता है।